कमिश्नर के निर्देशों के बावजूद पेयजल संकट से जूझ रहे लोग, घर से पानी लाने का रास्ता कोसों दूर

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शिवपुरी जिले के पोहरी नगर में इस वर्ष होली का त्योहार बड़े धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। लेकिन, इस खुशी के माहौल के बीच नगर परिषद की उदासीनता के चलते पेयजल संकट ने कई वार्डवासियों को बड़ी मुश्किल में डाल दिया। स्थानीय निवासी, जो कि पहले से ही पानी की किल्लत का सामना कर रहे थे, अब त्योहार के समय और भी कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। 

यहां के बार्डवासी, जिनमें वार्ड 6, 7, 8, 9, 10, 11, 4, 5, 13 शामिल हैं, पानी की घातक कमी से जूझते नजर आ रहे हैं। स्थानीय लोगों ने कई बार नगर परिषद के सीएमओ (मुख्य नगरपालिका अधिकारी) से संपर्क किया, लेकिन उनकी बातों का कोई असर नहीं हुआ। सीएमओ द्वारा फोन तक नहीं उठाए जाने के चलते, लोगों को कोसों दूर से पानी लाना पड़ा। कई लोगों ने प्राइवेट टैंकरों की मदद से कुछ मात्रा में पानी तो मंगवाया, लेकिन नगर परिषद द्वारा उनकी सुविधा के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई।

पार्षदों के घरों घर पहुंच रहे टैंकर

स्थिति यह है कि नगर परिषद के टैंकर वार्डवासियों की सहायता करने की बजाय पार्षदों के घर जाकर पेयजल की आपूर्ति कर रहे हैं। ऐसी नकारात्मक तस्वीर ने नीति और प्रशासनिक अव्यवस्था को उजागर किया है। यह स्थिति तब और भी गंभीर हो जाती है जब त्योहारों के समय लोगों को पीने के पानी के लिए साइकिल पर दूर-दूर तक सफर करना पड़ता है। 

शांति समिति की बैठक का प्रभाव और अव्यवस्थाएं

हालही में शांति समिति की बैठक में अनुविभागीय अधिकारी (एसडीएम) मोतीलाल अहिरवार ने स्पष्ट निर्देश दिए थे कि होली के दौरान पेयजल की आपूर्ति सुनिश्चित की जानी चाहिए। लेकिन, नगर परिषद के सीएमओ ने अब तक योजनाबद्ध व्यवस्था को लागू नहीं किया। सूत्रों के अनुसार, नगर परिषद के टैंकरों को वार्डों में भेजने के लिए अध्यक्ष की अनुमति लेनी पड़ती है, जिसके चलते समस्या और भी बढ़ गई है। इसका परिणाम यह हुआ कि लोगों को न केवल पानी के लिए तरसना पड़ा, बल्कि त्योहार भी काफी तनावपूर्ण बीता।

सफाई कर्मचारियों का हक और पार्षदों की प्राथमिकता

इस सब के बीच, नगर परिषद की और भी एक बड़ी समस्या सामने आई है। होली के पर्व पर सफाई कर्मचारियों को बेतन का भुगतान नहीं किया गया, जबकि पार्षदों के मानदेय का भुगतान कर दिया गया। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि जो लोग नगर की सफाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, उनकी मेहनत का कोई मूल्य नहीं है। इसके चलते सफाई कर्मचारियों की होली भी फीकी गुजरी, जबकि अन्य पार्षदों ने बिना किसी श्रम के अपने हक को पा लिया। 

जनता की मूलभूत समस्याओं को भूले जिम्मेदार

इस स्थिति ने यह स्पष्ट कर दिया है कि नगर परिषद को गंभीरता से इस मुद्दे की जड़ तक पहुंचना होगा। जनता की मूलभूत आवश्यकताओं की अनदेखी करना और नेताओं को प्राथमिकता देना, लोकतंत्र की धारा को कमजोर बनाता है। क्या इस पेयजल संकट से जूझते नागरिकों की आवाज़ प्रशासन सुनेगा? यह सवाल अब सबके मन में है। अगर यही स्थिति बनी रही, तो केवल होली ही नहीं, अन्य त्योहारों पर भी स्थानीय निवासियों को इसी संकट का सामना करना पड़ सकता है। प्रशासन को चाहिए कि वे शीघ्रता से इस मुद्दे का समाधान निकालें और नागरिकों को उनकी मूलभूत सुविधाएं प्रदान करें।

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